INDIA के भाव ने हमेशा से ही अपने रहस्य से विश्व को मोहित किया है। यह एक ऐसा उपमहाद्वीप है जिसका इतिहास 5,000 साल पुराना है। विविधता में एकता वाली सभ्यता की विशेषता वाला भारत हमेशा से ही ऐसे देश के रुप में जाना जाता है जिसका इतिहास उसके कण में गूंजता है।
भारत की पहली मुख्य सभ्यता 2,500 ई.पू. के लगभग सिंधु नदी घाटी में विकसित हुई, जिसका एक बड़ा हिस्सा आज भी वर्तमान भारत में है। यह सभ्यता जो कि 1,000 साल तक रही उसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से जाना जाता है। यह हजारों साल तक रही आबादी का चरमबिन्दु था। लगभग 1,500 ई.पू. से अफगानिस्तान और मध्य एशिया से आर्य जनजातियां उत्तर पश्चिम भारत में आने लगीं। उनकी सामरिक श्रेष्ठता के बावजूद उनकी प्रगति धीमी थी। अंततः यह जनजातियां पूरे उत्तर भारत से विंध्य पर्वतों तक शासन करने में सफल हुईं और मूल निवासी जो कि द्रविड़ थे उन्हें दक्षिण भारत में धकेल दिया गया। सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में यह आर्य जनजातियां लगभग पूरे गंगा के मैदानों में फैल गईं और उनमें से कई 16 प्रमुख राज्यों में बंट गईं। समय के साथ यह चार बड़े राज्यों में बदल गईं और कौशल और मगध पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के सबसे ताकतवर राज्य थे। 364 ईसा पूर्व में नंदा साम्राज्य का उत्तर भारत में बहुत प्रभुत्व रहा। हालांकि इस दौरान उत्तर भारत ने पश्चिम के दो हमलों को विफल किया। इनमें पहला फारसी राजा दारा, 521-486 ईसा पूर्व, और दूसरा महान सिकंदर द्वारा किया गया था, जो ग्रीस से भारत में 326 ईसा पूर्व में आया।
मौर्य पहले शासक थे जिन्होंने उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से और दक्षिण भारत के कुछ हिस्से पर, एक प्रदेश के तौर पर राज किया। अर्थशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ के लेखक कौटिल्य के मार्गदर्शन में चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक उच्च केंद्रीयकृत प्रशासन स्थापित किया। अशोक के शासन में यह साम्राज्य अपने चरम पर पहुंचा। अशोक के द्वारा बनवाए स्तंभ, पत्थरों पर गढ़वाए गए शिलालेख पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं और उनके विशाल साम्राज्य की गाथा गाते हैं। यह आज भी दिल्ली, गुजरात, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश में सारनाथ और मध्य प्रदेश में सांची में मौजूद हैं। 232 ईसा पूर्व में अशोक की मौत के बाद इस राज्य का तेजी से पतन हुआ और 184 ईसा पूर्व में यह पूरी तरह खत्म हो गया।
मौर्य के पतन के बाद उत्तर भारत में कई साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ। अगला उल्लेखनीय राजवंश गुप्त का रहा। हालांकि गुप्त राजवंश मौर्य जितना बड़ा नहीं था लेकिन उसने उत्तर भारत को राजनीतिक तौर पर एक सदी से ज्यादा यानि 335 ई से 455 ई तक एकजुट रखा।
मौर्य राजवंश के पतन के बाद मध्य और दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली राजवंश आए, जिनमें सातवाहन, कलिंग और वकटका प्रमुख थे। बाद में इस क्षेत्र ने कुछ महान साम्राज्य देखे, जैसे चोल, पंड्या, चेरा, चालुक्य और पल्लव।
उत्तर भारत में गुप्त के पतन के साथ ही बड़ी लेकिन प्रभावहीन क्षेत्रीय ताकतों की संख्या बढ़ने लगी जिससे नौवीं शताब्दी ईस्वी में राजनीतिक स्थिति बहुत अस्थिर हो गई। इससे पहले ग्यारवीं शताब्दी में मुगलों के आक्रमण का रास्ता बन गया। यह महमूद गौरी द्वारा सन् 1001 से सन् 1025 में किए गए लगातार सत्रह हमलों से पता चलता है। इन हमलों से उत्तर भारत का शक्ति संतुलन बिखर गया और बाद के आक्रमणकारी इस क्षेत्र पर विजय पाने में सफल रहे। हालांकि अगले मुस्लिम हमलावर शासक ने सही मायनो में भारत में विदेशी शासन की स्थापना की। महमूद गौरी ने भारत पर हमला किया और स्थानीय शासक उससे लड़ने में असफल रहे और इस तरह भारत में सफलतापूर्वक विदेशी शासन स्थापित हुआ। उसके शासनकाल में भारत का एक बड़़ा हिस्सा उसके कब्जे में आया और उसका उत्तराधिकारी कुतुब-उद-ऐबक दिल्ली का पहला सुल्तान बना। उसके बाद खिलजी और तुगलक का शासन आया जिसे दिल्ली सल्तनत का शासक कहा गया। इसने उत्तर भारत के बड़े हिस्से और दक्षिण भारत के कुछ हिस्से पर राज किया। इसके बाद लोधी और सैयादी के बाद मुगलों ने भारतीय इतिहास का सबसे जीवंत युग स्थापित किया।
बाबर, हुमायु अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब मुगल साम्राज्य के कुछ प्रमुख शासक थे। हालांकि मुगलों के सुनहरे दिन अपेक्षाकृत रुप से कम थे पर उनका राज्य बहुत विशाल था और उसमें लगभग पूरा भारतीय उपमहाद्वीप आता था। उसका महत्व सिर्फ उसके आकार में ही नहीं था। मुगल राजाओं ने कला और साहित्य के सुनहरे युग का संचालन किया और इमारतों को लेकर उनके जुनून के कारण भारत में कुछ महान वास्तुकला के नमूने मौजूद हैं। खासकर आगरा में शाहजहां का बनवाया हुआ ताजमहल विश्व के आश्चर्यों में से एक है। इसके अलावा कई किले, महल, दरवाजे, इमारतें, मस्जिदें, बावड़ी, उद्यान आदि भारत में मुगलों की सांस्कृतिक विरासत है। भारत में सबसे कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने में भी मुगलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सबसे उल्लेखनीय उनका राजस्व प्रशासन था जिसकी विशेषताएं आज भी भारत के राजस्व और भूमि सुधार कानूनों में दिखती हैं।
मुगलों के पतन के साथ ही पश्चिमी भारत में मराठों का उदय हुआ। भारत के अन्य भागों में नए प्रकार का विदेशी आक्रमण देखा गया जो कि व्यापार की आड़ में 15वीं शताब्दी ईस्वी से शुरु हुआ। इसमें पहला 1498 और 1510 ईस्वी के बीच वास्को दा गामा की अगुवाई में पुर्तगालियों का आगमन और धीरे धीरे अधिग्रहण था और दूसरा ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गुजरात के सूरत में अपनी पहली व्यापारिक पोस्ट स्थापित करना था।
भारत में केवल अंग्रेज और पुर्तगाली ही नहीं थे जो कि यूरोप से आए थे़। डेन और डच की भी यहां व्यापार चैकी थी और 1672 ईस्वी में फ्रेंच आए, जिन्होंने स्वयं को पोंडीचेरी में स्थापित किया और अंगेजों के जाने के बाद भी वे यहीं जमे रहे। ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधित्व वाले अंग्रजों ने भारत के बड़े हिस्से पर वाणिज्यिक नियंत्रण स्थापित किया और बहुत जल्द उसे प्रशासनिक आयाम भी दे दिया। 1857 के सुधारों के बाद भारत में औपचारिक तौर पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया।
तब से ही भारत का इतिहास अलग अलग नाम, विचारधारा, पृष्ठभूमि और तरीकों वाले राष्ट्रवादियों और अंग्रेजों और उनकी नीतियों के बीच लगातार संघर्ष वाला रहा।
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