INDIA के संविधान ने अपने नागरिकों को जीवन यापन की और श्रद्धा की आजादी की ग्यारंटी दी है। इससे देश भर में विभिन्न त्यौहारों का मनाया जाना सुनिश्चित हुआ।
भारत में क्योंकि हिंदुओं का बहुमत है, इनके त्यौहार यहां के कैलेंडर पर हावी दिखते हैं। सभी त्यौहारों में सबसे रंगारंग त्यौहार दीपावली है जिसे आमतौर पर रोशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। महाकाव्य रामायण के केन्द्रीय पात्र राम थे, जो अपने पिता के कहने पर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 सालों के वनवास पर गए। जंगलोें में घूमने के दौरान लंका के राजा रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। लंबे युद्ध के बाद राम ने रावण को हराया और सीता को बचाकर अपने राज्य अयोध्या
लौटे। दक्षिण स्थित लंका से उत्तर स्थित अयोध्या की यात्रा में उन्हें बीस दिन लगे। उनकी विजयी वापसी पर अयोध्या के लोगों ने खुशी में पूरा शहर जगमगाया और उत्सव मनाया। आज भी दीपावली पर पारंपरिक तौर पर लोग अपने घर और शहर को मिट्टी के दीयों से रोशन करते हैं। दीपावली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
दीपावली से बीस दिन पहले हुए राम और रावण के युद्ध और राम की विजय के उत्सव के तौर पर भारत के कई हिस्सों में दशहरा मनाया जाता है। दशहरे के दिन रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेधनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। भारत के विभिन्न गांवों, शहरों और कस्बों में दशहरे के पहले रामायण का प्रदर्शन किया जाता है। राम लीला कहे जाने वाले इस प्रदर्शन में पूरी रामायण का अभिनय किया जाता है, जो ज्यादातर युवा लड़के करते हैं और लड़के ही इसमें महिलाओं का पात्र भी निभाते हैं। यह बहुत लोकप्र्रिय है। बड़ी संख्या में लोग इसे देखने जुटते हैं।
यह तो भारत में दो प्रमुख हिंदू त्यौहारों का सामान्य ब्यौरा था। अलग अलग इलाकों में लोगों के इसे मनाने के तरीके में फर्क है। उदाहरण के तौर पर बंगाल में दीपावली से पहले दुर्गा पूजा मनाई जाती है।
जहां देवी दुर्गा की मूर्ति पश्चिम बंगाल में पूरी भक्ति के साथ तैयार की जाती है वहीं भारत भर में भगवान गणेश को विध्नहर्ता के तौर पर पूजा जाता है। महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का उत्सव भी उन्हीं के लिए है।
आजादी के बाद से भारत में सामान्य परंपराएं पुनः प्रचलन में आईं, खासकर शिल्प परंपरा। शिल्प भारत के धार्मिक और पारंपरिक रिवाजों का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि शिल्पकार हमेशा से ही मंदिरों में मूर्ति बनाते आए हैं और पूजा के लिए आवश्यक सामान मुहैया कराते रहे हैं। भारत की आजादी के पहले, अंग्रेजों द्वारा आधुनिक औद्योगिकरण की नीति के कारण कई गांवों में शिल्प का काम मंदा हो गया था।
हिंदू देव समूह में कई देव और देवियां हैं, जिन्हें देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग महत्व के आधार पर पूजा जाता है। विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण महाभारत के दिव्य मर्म हैं। उन्होंने ही कुरुक्षेत्र में कौरवों से युद्ध के दौरान पांच पांडवों में से एक अर्जुन को भगवत गीता का उपदेश दिया था। यह युद्ध अच्छाई और बुराई की शक्तियों के बीच की लड़ाई का प्रतीक है। भगवान कृष्ण कोई पौराणिक चरित्र नहीं हैं। भगवान कृष्ण को पूरे भारत में पूजा जाता है और विशेष रुप से उन्हें समर्पित कई मंदिर भी हैं। खासतौर पर मथुरा और वृंदावन में, जहां वह एक बालक के रुप में रहे और उनके चमत्कारों से उनकी दिव्यता का पता चलता गया। राधा के लिए उनका प्रेम, कांगड़ा या पहाड़ी चित्रकला करने वाले लघु चित्रकारों के लिए प्रेरणा रहा। सोने से की जाने वाली व्यापक चित्रकारी जो कि दक्षिण भारत की तंजोर शैली है, उसकी भी प्रेरणा रहा।
ग्रेगोरियन कैलेंडर से उलट भारतीय कैलेंडर अप्रैल से शुरु होता है। नए साल का पहला दिन बैसाखी के तौर पर मनाया जाता है और यह अक्सर अप्रैल 13 को होता है। यह उत्तर भारत, खासकर पंजाब में गेंहू की कटाई के समय पड़ता है। लोग इसे नए कपड़े पहनकर, नाचकर और गाकर मनाते हैं। पूर्वी भारत में नया साल 14 अप्रैल से शुरु होता है। इसमें युवा पुरुष और महिलाएं सिल्क के कपड़े पहनकर ढोल की थाप पर नाचते और गाते हैं। असम में इसे रंगाली बिहू कहा जाता है।
हिंदू देवी देवता असंख्य रुपों में विस्तृत अनुष्ठानों के साथ पूजे जाते हैं। इनमें से कई पूजाएं तो पंडितों द्वारा शुरु की गईं, इन सबके बीच उत्तर भारत में एक सुधारक आए जिन्होंने पूजा के रुप का सरलीकरण किया। वो गुरु नानक देव थे, उनकी और उनके बाद आए नौ गुरुओं की दी हुई शिक्षा को सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब में एकत्र किया गया। गुरु नानक और दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के जन्मदिवस बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और धार्मिक उत्साह और श्रद्धा से मनाए जाते हैं। इस दिन जुलूस निकाला जाता है, धर्मग्रंथ पढ़े जाते हैं और गुरुद्वारों को रोशन किया जाता है।
भगवान बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था और इसी धरती से बौद्ध धर्म श्रीलंका और तिब्बत पहुंचा। भगवान बुद्ध का जन्मदिन बुद्ध पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन आने वाला यह भारत का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। पूरे भारत में बौद्ध लोग अपने रिवाज और विशेष धार्मिक दिन मनाते हैं।
ईसाई भी भारत में समान रुप से रहते हैं। दो महत्वपूर्ण ईसाई संत सदियों पहले भारत आए और ईसाई धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। माना जाता है कि मसीह के बारहवें प्रचारक सेंट थाॅमस पहली शताब्दी में भारत आए थे और अपना बाकी जीवन यहीं बिताया और ईसाई धर्म का प्रचार किया। खासतौर पर केरल में, जहां बड़ी संख्या में लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया। तमिलनाडु के चैन्नई में स्थित उनकी समाधि भारत के ईसाइयों के लिए एक तीर्थस्थल है।
भारत के मुसलमान ईद के साथ सभी त्यौहार मनाते हैं, लेकिन अरब में उनका आध्यात्मिक घर है। हर साल मक्का जाने के लिए भारत सरकार हज यात्रियों के लिए विशेष इंतजाम करती है। इस विशेष आनंद के लिए उनके गंतव्य तक उन्हें पहुंचाने के लिए चार्टर्ड विमान का इस्तेमाल होता है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि इस देश के सभी लोगों को आजादी के बाद से समान संवैधानिक
अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त है और उनके त्यौहार और रिवाज भारत के बहुआयामी
समाज को नया आयाम देते हैं।
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